मैं लेखक हू …

मैं शब्दो का व्यापारी हूँ, लेखक मेरा नाम है…
भावनाओ ओर कामनाओ से मुझ ग़रीब का क्या कम है?
फकीर हू . लफ़ज़ो का, न्योचछावर जो शब्दो मे कर देता हूँ. . .
जब देखता हूँ तो बोल पड़ता हू… बोल कर फिर लिख देता हूँ…
पर जिसस दिन इस दिल ने बातों को सोच लिया…
ठहराव को अपने ज़िल्मे कर भावनाओ को समझ लिया…
कलम ना उठेंगी लिखने को…
मेरी बेहया कामनाए ही मजबूर करेगी आश्रूवो को बहा दे ने को…
ना पिरो पौँगा उस दिन मेरे लफ़ज़ो को,
लफ़ज़ो को कलाम की श्याही मे बहा देना मेरा काम है..
भावनाओ ओर कामनाओ से मेरा क्या काम है ?.
मैं लेखक हू ..बस लिख देता हूँ…
रोखना न्ही श्याही को मेरी, क्यूंकी लिखना मेरा काम है…
देखा जो पंक्षी को, उसकी उड़ान भर ली,
ठुर्थुराति सुबह तो कभी नारंगी शाम अपने नाम करली,
मिला जो मुझे कुछ तो सही जो ना मिला तो शब्दो मे बयान करदी. . .
लोभ, माया, तो सिर्फ़ दर्शक है मेरे, न्ही तो इनसे मेरा क्या काम है,
ज्ब मिलेगी मंज़ील तो खुश होजौंगा अगर ना मिले तो पन्नो के सहारे उसे अपना कर जाऊँगा..
सहम के कभी, कभी नासमझाइश के चलते अपने इरादे पेश कर जाता हू..
मैं शब्दो का व्यापारी हू.. लेखक मेरा नाम है..
सहारा है कलम ज़िंदगी का मेरी, ओर सिर्फ़ लिखना मेरा काम है…
मैं शब्दो का व्यापारी हू लेखक मेरा नाम है, अगर इतनी भी ना पहचान मिले तो इन शब्दो को क्या काम है….

Thank you so much Bhuvnesh for sharing this great idea with me.

One thought on “मैं लेखक हू …

  1. Wow, Mr Stranger. This is perfection. I am entralled. 😃 How beautifully you’ve penned down your thoughts, it’s amazing. This line, “देखा जो पंक्षी को, उसकी उड़ान भर ली,
    ठुर्थुराति सुबह तो कभी नारंगी शाम अपने नाम करली,” It paints a picture, a story. I lovvvvved it too much. ☺☺

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